Dhruv Das was the disciple of Gopinath, third son of Hit Harivansh Mahaprabhu. From his childhood days, He was deeply attached towards Radha Krishna. He had an intense longing for Radha Krishna, he used to wander in an absorbed state of love near Yamuna river and in the jungles of Vrindavan. One day he felt an intense longing for Radharani. He was wandering in the bowers of Vrindavan and came towards Raas Mandal and he felt great excitement and deep longing and separation of Radharani. He stayed on that Raas Mandal, thinking what is the use of this body without the vision of Radharani? There is no need to go back to my living place. I will not go from here, till she arrives. The whole night passed and the sun rose. It went down and the second night passed and he did not sleep and like this, days and nights passed.
One night while he was in a state of half awake and half asleep, he heard a jingling sweet sound and after that, he felt a loving touch on his head. Suddenly, He saw Radharani standing in front of him. The sound he heard was the sound of Radharani's anklet and the touch he felt was Radharani's hand on his head. He didn't say anything but Radharani said, "I will never depart from you. I will always remain with you.”
After receiving the grace of Shri Radha, his whole personality was changed. His self-became one with Radha. He became the form of Radha's love. One of the famous book, he wrote was Bayalis Leela, a book of Forty-two leelas of Radha Krishn.
श्री ध्रुवदास, वृन्दावन के रसिक, श्री हित हरिवंश महाप्रभु के तीसरे पुत्र गोपीनाथ के शिष्य थे। अपने बचपन के दिनों से, वह राधा कृष्ण के प्रति बहुत गहरी निष्ठा रखते थे। उनमें राधा कृष्ण को प्राप्त करके की तीव्र इच्छा एवं अभिलाषा बचपन से ही थी और वह यमुना नदी के पास और वृंदावन के जंगलों में भावावेश अवस्था में घूमते थे। एक दिन वह रास मंडल की तरफ आ गए और राधारानी के मिलन की तीव्र इच्छा हुई। वह रास मंडल पर ही खड़े रहे, यह सोच कर कि राधारानी के दर्शन एवं मिलन के बिना, इस जीवन का क्या उपयोग है? उन्होंने सोचा जब तक वो नहीं आती तब तक रास मंडल पर ही रहूँगा| पूरी रात बीत गई और अगला दिन बीत गया। लेकिन यह क्रम चलता रहा, दूसरी रात बीत गई और वह बिना सोये एवं खाये, तीव्र अभिलाषा से राधा रानी की प्रतीक्षा करते रहे|
एक रात जब वह आधे जगे और आधे सोये की अवस्था में थे, तो उन्हें एक मधुर पायल की ध्वनि सुनाई दी और इसके बाद उनके सिर पर एक प्रेमपूर्वक स्पर्श महसूस हुआ। उन्होने अपने मस्तक पर राधा रानी का हाथ महसूस किया | अचानक उन्होंने देखा कि राधारानी उनके सामने खड़ी हैं। ध्रुवदास जी यह सब कुछ देख रहे थे, कुछ बोले ही नहीं, और राधारानी बोलीं कि "मैं कभी भी तुमसे दूर नहीं जाउंगी। मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी।"
श्री राधारानी की कृपा को प्राप्त करने के बाद, उनका पूरा व्यक्तित्व ही बदल गया। वह राधारानी के प्रेम का साक्षात् रूप बन गए| उन्होंने प्रसिद्ध पुस्तकें एवं पद लिखे हैं, जिनमें से एक है "बयालीस" लीला, राधा कृष्ण की बयालीस लीलाएं।
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