Shri Neh Nagri Das Ji was born around 1590 and he lived through the middle of the 17th century. He took initiation from Shri Van Chandra Goswami elder son of Shri Hit Harivsh Mahaprabhu. He gave his own introduction in his writings:
"सुन्दर श्री बरसानो निवास और बास बसों श्री वृन्दावन धाम है।
देवी हमारे श्री राधिका नागरी गोत सौं श्री हरिवंश नाम है।।
देव हमारे श्रीराधिकावल्लभ रसिक अनन्य सभा विश्राम है।
नाम है नागरीदासि अली वृषभान लली की गली को गुलाम है।।”
For some time He stayed in Vrindavan because He used to remain in "Bhava Avastha" in Vrindavan due to which he did not pay attention to his conduct. Being simple and naive, He started doing such conduct which many people protested against and he left Vrindavan and came to Barsana.
Nagri Das Ji was the exclusive devotee of Radharani. Nagri Das Ji made his cottage in the Gehvar Van forest, which is also famous as the “Mor Kuti” peacock cottage. On one day, Shri Radha Rani with the Ashtashikhees appeared to her cottage. Nagri Das Ji fell unconscious after watching the divine form of Kishori Ji. In that state, Shri Radha said to them, "We constantly play here, we are hungry in the middle of the night. Is it possible for you to prepare some food for us at this time?". He has written the same thing in his pads:
"भूखे हैं हम आधी रैन, या बिरियाँ स्वबावै तब चैन”
Nagri Das Ji, with great joy, gave food to Shri Radha at that time and from that day, he started preparing "Kheer" and “Pudhis” for Radharani and Sakhis at midnight. Nagari Das Ji has praised Radha Krishna through his voice and pads.
नेह नागरी दास जी का जन्म 1590 के लगभग हुआ और वह 17 वी शताब्दी के मध्य तक जीवित रहे | उन्होंने श्री वन चंद्र गोस्वामी, हितहरिवंश जी के सुपुत्र से दीक्षा ली | राधावल्लभ सम्प्रदाय से इनका सम्बन्ध था| उन्होंने अपना परिचय कुछ इस प्रकार दिया है |
"सुन्दर श्री बरसानो निवास और बास बसों श्री वृन्दावन धाम है।
देवी हमारे श्री राधिका नागरी गोत सौं श्री हरिवंश नाम है।।
देव हमारे श्रीराधिकावल्लभ रसिक अनन्य सभा विश्राम है।
नाम है नागरीदासि अली वृषभान लली की गली को गुलाम है।।”
नागरीदास जी वृषभानु लली की गली के ऐसे गुलाम थे कि किसी और गली में भूलकर भी जाना पसंद नहीं करते थे | राधा और हितहरिवंश में इस प्रकार की दृढ़ निष्ठां के कारण जहाँ एक ओर उन्होंने अपने पदों में बरसाने का वर्णन भी किया है|
कुछ समय तक वृंदावन में रहे क्योंकि यह वृंदावन में नित्य भाव अवस्था में रहते थे जिसके कारण यह अपने आचरण पर ध्यान नहीं देते थे, सरलता और भोलेपन में यह ऐसे आचरण करने करने लगे जिसे देख कर के कई लोगों ने इनका विरोध किया और यह बरसाने चले गए |
नागरीदास जी राधारानी के अनन्य भक्त थे | नागरीदास जी ने बरसाने में गहवर वन में अपनी कुटिया बनाई जो आज मोर कुटी के नाम से प्रसिद्ध है एक दिन इसी स्थान पर उन्होंने अष्टसखियों सहित श्री राधा रानी के प्रत्यक्ष दर्शन हुए | नागरीदास जी प्रेम और सौंदर्य की अंतिम सीमा श्री किशोरीजी के साक्षात् दर्शन कर मूर्छित हो गए| उस स्थिति में श्री राधा ने उनसे कहा हम नित्य प्रति यहाँ खेलने आती हैं हमें अर्द्धरात्रि में भूख लगती है इस समय यदि हमें कुछ भोजन कराओ तो शांति हो हमको | इन्होने यही बात अपने पदों में लिखी है:
"भूखे हैं हम आधी रैन, या बिरियाँ स्वबावै तब चैन”
नागरीदास जी परम हर्षित होकर उसी समय श्री राधा को भोजन कराया और उसी दिन से अर्ध रात्रि के समय खीर और पूड़ियों का भोग रखने लगे|
नागरी दास जी ने अपनी वाणी एवं पदों के माध्यम से राधा कृष्ण का गुणगान किया है|
Website: www.brajrasik.org
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