"Anulikhiyantanapi Sadap Radha Nam Dhupati" - Shri Hita Harivansh Mahaprabhu - Shri Radha Sudha Nidhi - 154
"Anulikhiyantanapi Sapradha Na Madhupati, Mahaprema Vashishtatava Paramdeyam Vimrishati |
Tavaikam Shri Radhey Grinat Iha Namamrit, Mahima Ka Seema Saparshati Tava Dasaya Eik Mansam"
- Shri Hita Harivansh Mahaprabhu - Shri Radha Sudha Nidhi - 154
O Shri Radha, when a person once tastes the nectar of Your holy name, Lord Krishna becomes filled with love for him, makes no record of his offenses, and considers giving him the greatest gift. Who, then, can touch the pinnacle of the glory possessed by a person who has exclusively accepted Your servitude?
अनुल्लिख्यानन्तानपि सदपराधान्मधुपति - महाप्रेमाविष्टस्तव परमदेयं विमृशति |
तवैकं श्रीराधे गृणत इह नामामृत रतं, महिम्नः कः सीमां स्पृशति तव दास्यैक मनसाम् | |
- श्री हित हरिवंश महाप्रभु - श्री राधा सुधा निधि (154)
हे श्री राधे जो कोई आपके 'श्री राधा' इस एक ही अमृत-रूप नाम का गान अथवा स्मरण कर लेता है उसके अनन्त-अनन्त महत् अपराधों की आपके महाप्रेमाविष्ट प्रियतम मधुपति गणना न करके यह विचारने लगते हैं कि इसको इसके बदले क्या देना चाहिये, और जिन्होंने अपने मन में आपका एकमात्र दास्य ही स्वीकार कर रखा है उनकी महिमा-सीमा अनिर्वचनीय है, उसका स्पर्श कौन कर सकता है।
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