" Aur Desh Ke Basat Hi, Adhik Bhajan Jo Hoy,
Ihi Sam Nahin Pujat Tou, Vrindavan Rahe Soy"
- Shri Dhruvdas, Shri Vrindavan Shat Leela -52
Such a glory revealed by Rasik Saints about Vrindavan, if one performs immense "bhajana" (chanting) in other countries, but that 'bhajana' is not even equivalent to sleeping in Shri Vrindavan Dham.
" और देश के बसत ही, अधिक भजन जो होय |
इहि सम नहीं पूजत तोउ, वृन्दावन रहे सोय || 52 "
- श्री ध्रुवदास, वृन्दावन शत लीला
वृन्दावन का इतना अधिक महत्त्व है की अन्य देशों में बसने पर चाहे विशाल भजन क्यों न होता हो परन्तु यह वृन्दावन में सोते रहने के समान भी नहीं है।
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