Jhadu Mandal, Vrindavan

Jhadu Mandal, Vrindavan 
The pastime connected with this place of famous Srila Jiva Goswami and Shyamananda. Jiva Goswami gave Shyamananda the service of sweeping this ancient place of Radha Krishn's pastimes.One day, while he was sweeping in the early hours before dawn, Shyamanand found a golden anklet. Previously, Jiva Goswami had instructed him to return any lost object that he might find, directly to its owner, not to anyone else. If any others should try to claim a lost item, he should inform them of Jiva Goswami’s instruction to him. Shyamanand therefore very carefully tied the golden anklet in the corner of his upper garment. A short while later, two Braj balas (young girls) came to him and said, “The anklet you found belongs to our sakhi, and we have been looking for it. You can give it to us.” Shri Shyamanand humbly replied, “Whomever the anklet belongs to should personally come and collect it. I will not give it to you.” The young girls replied, “Do you feel no shame? How can you dare desire to see the face of this young daughter-in-law?” But Shyamananda adhered to his words and did not give them the anklet. The two young girls brought their girlfriend to Shyamananda and said, “Tie the anklet around Her foot.” Shri Shyamanand hands trembled with prema as he tied the anklet around the foot of their friend and went into bhava doing so. These young girls were none other than Shri Radha Rani Herself and Her two sakhis, Lalita and Vishakha. By this event, Shyamanand's life became blessed. Previously his name was Dukhi-Krishna dasa, but upon receiving the mercy of Radharani, his name became Shyamanand dasa. Lalita devi stamped that anklet on Shyamand’s forehead. Even today, those in the spiritual family lineage of Shyamanand's Prabhu wear a tilaka in the shape of the anklet on their forehead. 

There is another pastime which took place here:​

The following incident also took place here. Once, a long time ago, an old woman lived at Jhadu-mandala, and in her house she had a grindstone. She used this stone to grind wheat for others and in this way carried on her livelihood. She had an unflinching devotion to Krishna As she ground wheat, her beautiful voice sang the sweet names of Krishna while the grindstone made a rumbling gharr-gharr sound. One day, as she was grinding during the early hours before dawn, absorbed in singing the sweet names of Krishna a beautiful dark-complexioned young boy appeared and put one foot on the grindstone. “Maiya,” He said, “why do you turn the grindstone in such a way that it makes this rumbling gharr-gharr sound? I cannot sleep because of it.” The old lady became a little fearful and said, “My dear son, if I do not work the grindstone, how will I maintain my life?”​The beautiful, dark-complexioned boy replied, “I will put My footprint on your grindstone. People will come to take darshana of this footprint and give generous offerings. Their offerings will easily maintain you. Thus, you won’t need to use the grindstone anymore.” Saying this, the dark-complexioned boy disappeared.
When morning came, the old lady saw that the boy’s footprint had fully appeared on her grindstone. A crowd of people lined up, desirous to take darshana of the footprint, and this crowd increased day by day. The old lady was able to maintain herself easily through the donations she received, and she was always absorbed in remembering this pastime of Krishna
Location:

Jhadhu Mandal is located on the bank of Yamuna Ji, very near to Imlitala & Shringar Vat.

झुडू मंडल, वृंदावन
मशहूर श्रीला जिव गोस्वामी और श्यामानंद की इस स्थान से लीला जुडी हुई है। जिवा गोस्वामी ने श्यामानंद को राधा कृष्ण के समय के इस प्राचीन स्थान को सँभालने की सेवा दी थी। एक दिन, जब वह सुबह के शुरुआती घंटों में घूम रहा था, श्यामानंद को सुनहरी पायल मिली। पहले ही जिवा गोस्वामी ने उन्हें किसी भी खोयी हुई वस्तु को तुरंत उसके मालिक को वापस करने का निर्देश दिया था किसी और को नहीं। अगर कोई अन्य खोई हुई वस्तु का दावा करने का प्रयास करता है, तो उन्हें जिवा गोस्वामी को सूचित करना चाहिए अर्थार्त जीवा गोस्वामी को बताना चाहिए। इसलिए श्यामानंद ने सुनहरी पायल अपने ऊपरी रिधान के कोने में बहुत ध्यान से बांध लिया। थोड़ी देर बाद, दो ब्रज बाला (युवा लड़कियां) उनके पास आईं और कहा, "आपको मिला हुई पायल हमारी सखी की है, और हम इसकी तलाश में आये हैं। आप इसे हमें दे सकते हैं। "श्री श्यामानंद ने नम्रता से जवाब दिया," जो भी पायल से संबंधित है उसे व्यक्तिगत रूप से आना और इकट्ठा करना चाहिए। मैं तुम्हें यह नहीं दूंगा। "युवा लड़कियों ने जवाब दिया," क्या आपको कोई शर्म नहीं है? आप इस छोटी बहू के चेहरे को देखने की इच्छा कैसे हिम्मत कर सकते हैं? "लेकिन श्यामानंद ने अपने शब्दों का अड़े रहे और उन्हें घुंगरू नहीं दिया। दो युवा लड़कियों ने अपनी प्रेमिका को श्यामानंद में लाया और कहा, "उसके पाँव के चारों ओर घुंगरू बांधो।" श्री श्यामानंद हाथ प्रीमा के साथ थके हुए थे क्योंकि उन्होंने अपने दोस्त के पाँव के चारों ओर घुंगरू बांध दिया था और ऐसा करने में भव में गए थे। ये युवा लड़कियां श्री राधा रानी खुद और उनकी दो सखी, ललिता और विशाखा के अलावा अन्य कोई नहीं थीं। इस घटना से, श्यामानंद का जीवन धन्य हो गया। पहले उनका नाम दुखी-कृष्ण दासा था, लेकिन राधाणी की दया प्राप्त करने पर उनका नाम श्यामानंद दास बन गया। ललिता देवी ने श्यामानंद के माथे पर घुंगरू लगाया। आज भी, श्यामानंद के प्रभु के आध्यात्मिक परिवार वंश में वे अपने माथे पर पायल के आकार में एक तिलका पहनते हैं।
इस जगह पे एक और लीला हुई थी। एक बार बहुत समय पहले एक एक बूढी औरत झाड़ू मंडल मैं रहती थी और उनकी घर मैं एक चक्की का पत्थर था। वह इस पत्थर का प्रयोग दूसरे लोगो का गहुँ पीसने के लिए करती थी और इस तरह से वो अपना गुजरा करती थी। वह बूढी औरत श्री कृष्ण की बहुत बड़ी भक्त थी। जब वो चक्की चलाया करती थी तो चक्की घर्र-घर्र की आवाज करती थी और उनकी प्यारी आवाज श्री कृष्ण के गीत गया करती थी। एक दिन सुबह सुबह औरत चक्की चला रही थी और श्री कृष्ण का नाम जपने मैं व्यस्त थी। एक सुन्दर काले रंग की आकृति प्रकट हुई और उसने एक पाँव चक्की के ऊपर रख दिया उसने कहा "मैया" आप इस चाकी को इस तरह क्यों चलते हो की मैं सो नहीं पता यहाँ घर्र-घर्र की आवाज करती है? बूढी औरत थोड़ी घबरा गई और बोली -"मेरे प्रिय पुत्र अगर मैं चक्की नहीं चलाऊंगी तो मेरे जीवन का गुजरा कैसे होगा काले रंग की आकृति वाले लड़के ने उत्तर दिया -"मैं अपने चरण के निशान इस पत्थर पे रख देता हु। लोग इसके दर्शन करने के लिए आगे और दान देंगे। दान से तुम्हारा गुजरा हो जाएगा। "अब तुम इस चक्की को और प्रयोग नहीं करोगी " इतना कहकर वो आकृति अदृश्ये हो गई। सुबह जब सुबह बूढी औरत ने चक्की को देखा तो उस चक्की पे पारो की निशान बन चुके थी। उस आकृति को देखने की इच्छा से लोग पंक्तियों मैं खड़े थी और लोगो की भीड़ दिन प्रति दिन भड़ती ही जा रही थी। दान की वजह से बूढी औरत अपना जीवन गुजरने मैं समर्थ थी । औरत हमेशा श्री कृष्ण की लीला मैं व्यस्त रहने लगी
स्थान:

झाडू मंडल यमुना जी के तट पर स्थित है, जो इमली तला और श्रिंगार वट के बहुत पास है।

Website: www.brajrasik.org

Comments