Uddhava Kunda
Uddhava-Kunda is situated exactly west of Kusum-sarovar on the right side of the parikrama path in Goverdhan. Vajranabha Maharaja manifested Uddhava-Kunda under the guidance of Sandilya and other sages. Uddhav Ji always resides near by here as grass and shrubs in order to be sprinkled by the foot-dust of the gopis. The Shrimad Bhagwatam Mahatma of the Skanda Purana gives an interesting description of this place.
After the disappearance of Shri Krishn, His queens in Dvaraka were greatly afflicted by sorrow. Once, Vajrnabh came here with them and they loudly performed sankirtan. In that great sankirtan, all the associates of Krishna started to appear one by one. The associates of Dwarika all sang and danced, and Arjuna began to dance and play mridanga. Suddenly, that exalted soul, Shri Uddhava emerged from the grass and shrubs, and he also became immersed in dancing in that maha-sankirtan. How could Krishna not come there? Finally, He also appeared in that maha-sankirtan ras, along with Shri Radhika and the other sakhis and, after some time, disappeared again. In this way, Uddhava pacified the queens at this place.
Location: Uddhav Kunda is Located at Goverdhan near to Kusum Sarovar.
उद्धव कुण्ड
Uddhava-Kunda is situated exactly west of Kusum-sarovar on the right side of the parikrama path in Goverdhan. Vajranabha Maharaja manifested Uddhava-Kunda under the guidance of Sandilya and other sages. Uddhav Ji always resides near by here as grass and shrubs in order to be sprinkled by the foot-dust of the gopis. The Shrimad Bhagwatam Mahatma of the Skanda Purana gives an interesting description of this place.
After the disappearance of Shri Krishn, His queens in Dvaraka were greatly afflicted by sorrow. Once, Vajrnabh came here with them and they loudly performed sankirtan. In that great sankirtan, all the associates of Krishna started to appear one by one. The associates of Dwarika all sang and danced, and Arjuna began to dance and play mridanga. Suddenly, that exalted soul, Shri Uddhava emerged from the grass and shrubs, and he also became immersed in dancing in that maha-sankirtan. How could Krishna not come there? Finally, He also appeared in that maha-sankirtan ras, along with Shri Radhika and the other sakhis and, after some time, disappeared again. In this way, Uddhava pacified the queens at this place.
Location: Uddhav Kunda is Located at Goverdhan near to Kusum Sarovar.
उद्धव कुण्ड
उद्धव कुण्ड – कुसुम सरोवर के ठीक पश्चिम में परिक्रमा मार्ग पर दाहिनी ओर उद्धव कुण्ड है। स्कन्दपुराण के श्री मभदागवत-माहात्म्य प्रसगड में इसका बड़ा ही रोचक वर्णन है। वज्रनाभ महाराज ने शाण्डिल्य आदि ) श्रीषियो के आनुगत्य में यहाँ उद्धव कुण्ड का प्रकाश किया। उद्धव जी यहाँ पास में ही गोपियों की चरण धूलि में अभिषिक्त होने के लिए तृण-गुल्म के रूप में सर्वदा निवास करते हैं। श्रीकृष्ण की लीला अप्रकट होने पर कृष्ण की द्वारका वाली पटरानियाँ बड़ी दुःखी थीं। एक बार वज्रनाभजी उनको साथ लेकर यहाँ उपस्थित हुए। बड़े जोरोंसे सप्रीर्तन आरम्भ हुआ। देखते-देखते उस महासप्रीर्तन में कृष्ण के सभी परिकर क्रमशः आविर्भूत होने लगे। अर्जुन मृदड् वादन करते हुए नृत्य करने लगे। इस प्रकार द्वारका के सभी परिकर उस सप्रीर्तन मण्डल में
नृत्य और कीर्तन करने लगे। हठात् महाभागवत उद्धव भी वहाँ के तृण गुल्म से आविर्भूत होकर नृत्य में विभोर हो गये। फिर भला कृष्ण ही कैसे रह सकते थे? श्रीमती राधिका आदि सखियों के साथ वे भी उस महासप्रीर्तन
रास में आविर्भूत हो गये। थोड़ी देर के बाद ही वे अन्तध्र्यान हो गये। उद्धव जी ने द्वारका की महिषियों को यहीं पर सांत्वना दी थी। यहाँ श्रीगोवर्धन की परिक्रमा करने वाले परिक्रमा-मार्गसे श्रीराधा कुण्ड आदि की परिक्रमा करते हुए आगे बढ़ते हैं। श्रीराधा कुण्ड आदि की परिक्रमा और दर्शनीय लीला स्थलियों का वर्णन पहले किया जा चुका है। श्रीब्रजमण्डल परिक्रमा के यात्री गोवर्धन-परिक्रमा सम्पत्र कर गोवर्धन या जतीपुरा से नीम गाँव की ओर अग्रसर होते हैं। – कुसुम सरोवर के ठीक पश्चिम में परिक्रमा मार्ग पर दाहिनी ओर उद्धव कुण्ड है। स्कन्दपुराण के श्री मभदागवत-माहात्म्य प्रसगड में इसका बड़ा ही रोचक वर्णन है। वज्रनाभ महाराज ने शाण्डिल्य आदि ) श्रीषियो के आनुगत्य में यहाँ उद्धव कुण्ड का प्रकाश किया। उद्धव जी यहाँ पास में ही गोपियों की चरण धूलि में अभिषिक्त होने के लिए तृण-गुल्म के रूप में सर्वदा निवास करते हैं। श्रीकृष्ण की लीला अप्रकट होने पर कृष्ण की द्वारका वाली पटरानियाँ बड़ी दुःखी थीं। एक बार वज्रनाभजी उनको साथ लेकर यहाँ उपस्थित हुए। बड़े जोरोंसे सप्रीर्तन आरम्भ हुआ। देखते-देखते उस महासप्रीर्तन में कृष्ण के सभी परिकर क्रमशः आविर्भूत होने लगे। अर्जुन मृदड् वादन करते हुए नृत्य करने लगे। इस प्रकार द्वारका के सभी परिकर उस सप्रीर्तन मण्डल में
नृत्य और कीर्तन करने लगे। हठात् महाभागवत उद्धव भी वहाँ के तृण गुल्म से आविर्भूत होकर नृत्य में विभोर हो गये। फिर भला कृष्ण ही कैसे रह सकते थे? श्रीमती राधिका आदि सखियों के साथ वे भी उस महासप्रीर्तन
रास में आविर्भूत हो गये। थोड़ी देर के बाद ही वे अन्तध्र्यान हो गये। उद्धव जी ने द्वारका की महिषियों को यहीं पर सांत्वना दी थी। यहाँ श्रीगोवर्धन की परिक्रमा करने वाले परिक्रमा-मार्गसे श्रीराधा कुण्ड आदि की परिक्रमा करते हुए आगे बढ़ते हैं। श्रीराधा कुण्ड आदि की परिक्रमा और दर्शनीय लीला स्थलियों का वर्णन पहले किया जा चुका है। श्रीब्रजमण्डल परिक्रमा के यात्री गोवर्धन-परिक्रमा सम्पत्र कर गोवर्धन या जतीपुरा से नीम गाँव की ओर अग्रसर होते हैं।
नृत्य और कीर्तन करने लगे। हठात् महाभागवत उद्धव भी वहाँ के तृण गुल्म से आविर्भूत होकर नृत्य में विभोर हो गये। फिर भला कृष्ण ही कैसे रह सकते थे? श्रीमती राधिका आदि सखियों के साथ वे भी उस महासप्रीर्तन
रास में आविर्भूत हो गये। थोड़ी देर के बाद ही वे अन्तध्र्यान हो गये। उद्धव जी ने द्वारका की महिषियों को यहीं पर सांत्वना दी थी। यहाँ श्रीगोवर्धन की परिक्रमा करने वाले परिक्रमा-मार्गसे श्रीराधा कुण्ड आदि की परिक्रमा करते हुए आगे बढ़ते हैं। श्रीराधा कुण्ड आदि की परिक्रमा और दर्शनीय लीला स्थलियों का वर्णन पहले किया जा चुका है। श्रीब्रजमण्डल परिक्रमा के यात्री गोवर्धन-परिक्रमा सम्पत्र कर गोवर्धन या जतीपुरा से नीम गाँव की ओर अग्रसर होते हैं।
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